unheard.

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17 Apr 2019

दिल ना दिमाग कि, फिर किस की तू सुनेगा, ना घर की ना दोस्त की, फिर किस की तू सुनेगा, अपनी कलम चले, मंटो की स्याही पे, लिखे तेज, चले तेज, करदे हर पन्ने को खून खून, है अपना कुछ ऐसा ही जुनून, लिखते हैं जब दिखता कहीं नहीं सुकून, बोहत्त लिख लिया, ये वाला अच्छा है, ये वाला बुरा है, अब तो लड़ेंगे, कलम की स्याही पे, जमीन पे, अपनी नहीं, आवाम की जरूरतों पे, तू देख के तो देख कितना तुझे दिखता है, यहां हर कोई बिकता है, कोई धर्म पे तो कोई पैसे पे, न्याय के नाम पे अन्याय यहां खुले आम बिकता है, तू कहता है तू बोलते बोलते नहीं थकता है, क्या तुझे ये सब नहीं दिखता है, अरे मतलब नहीं है तुजको, तुझे सिर्फ तू दिखता है, देख जरा अपनी आंखे खोल के यहां हर कोई सस्ते में बिकता है। तू कहता है तेरे नाम पे लड़ने वालो कि फौज खड़ी, कोन खड़ी देख मुड़ के, पीछे तेरी मौत खड़ी, मौत खड़ी लेके चिलम ओर दारू, वक्त है संभल जा, वरना तेरी खाई खड़ी, तू सोचे जो जरूरी, वो सिर्फ तेरे लिए, क्यों तू उसके लिए मारने काटने को तैयार, अरे वक्त का खोटा सिक्का पलटने को है तैयार, तू देख के तो देख यहां सब कुछ बिकता है, तू इस पे कुछ बोल के तो देख, कब तक तू थकता है, अपनी कलम चले, मंटो की स्याही पे, लिखे तेज, चले तेज, करदे हर पन्ने को खून खून, है अपना कुछ ऐसा ही जुनून, लिखते हैं जब दिखता कहीं नहीं सुकून, बोहत्त लिख लिया, ये वाला अच्छा है, ये वाला बुरा है, अब तो लड़ेंगे, कलम की स्याही पे, जमीन पे, अपनी नहीं, आवाम की जरूरतों पे। दिल ना दिमाग कि, फिर किस की तू सुनेगा, ना घर की ना दोस्त की, फिर किस की तू सुनेगा,

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5 years ago

दिल ना दिमाग कि, फिर किस की तू सुनेगा, ना घर की ना दोस्त की, फिर किस की तू सुनेगा, अपनी कलम चले, मंटो की स्याही पे, लिखे तेज, चले तेज, करदे हर पन्ने को खून खून, है अपना कुछ ऐसा ही जुनून, लिखते हैं जब दिखता कहीं नहीं सुकून, बोहत्त लिख लिया, ये वाला अच्छा है, ये वाला बुरा है, अब तो लड़ेंगे, कलम की स्याही पे, जमीन पे, अपनी नहीं, आवाम की जरूरतों पे, तू देख के तो देख कितना तुझे दिखता है, यहां हर कोई बिकता है, कोई धर्म पे तो कोई पैसे पे, न्याय के नाम पे अन्याय यहां खुले आम बिकता है, तू कहता है तू बोलते बोलते नहीं थकता है, क्या तुझे ये सब नहीं दिखता है, अरे मतलब नहीं है तुजको, तुझे सिर्फ तू दिखता है, देख जरा अपनी आंखे खोल के यहां हर कोई सस्ते में बिकता है। तू कहता है तेरे नाम पे लड़ने वालो कि फौज खड़ी, कोन खड़ी देख मुड़ के, पीछे तेरी मौत खड़ी, मौत खड़ी लेके चिलम ओर दारू, वक्त है संभल जा, वरना तेरी खाई खड़ी, तू सोचे जो जरूरी, वो सिर्फ तेरे लिए, क्यों तू उसके लिए मारने काटने को तैयार, अरे वक्त का खोटा सिक्का पलटने को है तैयार, तू देख के तो देख यहां सब कुछ बिकता है, तू इस पे कुछ बोल के तो देख, कब तक तू थकता है, अपनी कलम चले, मंटो की स्याही पे, लिखे तेज, चले तेज, करदे हर पन्ने को खून खून, है अपना कुछ ऐसा ही जुनून, लिखते हैं जब दिखता कहीं नहीं सुकून, बोहत्त लिख लिया, ये वाला अच्छा है, ये वाला बुरा है, अब तो लड़ेंगे, कलम की स्याही पे, जमीन पे, अपनी नहीं, आवाम की जरूरतों पे। दिल ना दिमाग कि, फिर किस की तू सुनेगा, ना घर की ना दोस्त की, फिर किस की तू सुनेगा,

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