Chitresh Tiwari

ले खेल

Chitresh Tiwari
ले खेल

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19 Dec 2018

शब्दों की सच्चाई है शब्दों का तमाचा है रूबरू हुआ मैं जिससे उसी ने मेरा काटा है। खेल मैं खेल में अकेले खेल रहा था मैदान जंगी था मैं पैल रहा था झेल रहा था जैसे भी खेल कर किस्मत से मेरा बैर था पर मेहनत से मेल कर मैं बढ़ रहा था लड़ झगड़ कर किस्मत से अकड़ कर भरोसा स्वयं पर आलस को मार झापड़ गिर कर संभल कर खुद की अकल पर नाज था बेहद ही हाथ छोड़ देता तो भस्म थी ये ज़िन्दगी खेल खेल मैं अकेले खेल रहा था दुख सारे झेल रहा था ग़लत राह पर गया नही मेहनत मेरी जाया नही बिन धन दौलत के खड़ा था पर मन बैरागी चलो कुछ नया सही दोस्तों ने भी साथ दिया था पर मुझ को वो जमा नहीं अकेले बैठा रहता चुप चाओ सेहत रहता कभी खाई रोटी कभी बस रोटा रहता लड़का था तो लड़ना था सपने जो बुने थे उन्हें भी पूरा करना था एक लड़की से प्यार था बिना इजहार का बस उसको हस्ते देखने का किया खुद से करार था दिल मक्कार था उससे बातें कर बैठा उसका धंदा दिल तोड़ने का बोली तुम दोस्त मेरे न कभी छोड़ने का हाथ मेरा अकेला था मैं पहले से उससे मिलने के बाद साथ मेरे गम भी रहता वो उसके बाद कभी मिली नही अब दम भी पिता। टूटा मैं हद तक बरगद का पेड़ था मैं खड़ा पूरी जड़ तक उसके भूल बैठा करतब लगा ली मेहनत की चुस्की उसके आगे नतमस्तक अब बस खेल हैं।।

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6 years ago

शब्दों की सच्चाई है शब्दों का तमाचा है रूबरू हुआ मैं जिससे उसी ने मेरा काटा है। खेल मैं खेल में अकेले खेल रहा था मैदान जंगी था मैं पैल रहा था झेल रहा था जैसे भी खेल कर किस्मत से मेरा बैर था पर मेहनत से मेल कर मैं बढ़ रहा था लड़ झगड़ कर किस्मत से अकड़ कर भरोसा स्वयं पर आलस को मार झापड़ गिर कर संभल कर खुद की अकल पर नाज था बेहद ही हाथ छोड़ देता तो भस्म थी ये ज़िन्दगी खेल खेल मैं अकेले खेल रहा था दुख सारे झेल रहा था ग़लत राह पर गया नही मेहनत मेरी जाया नही बिन धन दौलत के खड़ा था पर मन बैरागी चलो कुछ नया सही दोस्तों ने भी साथ दिया था पर मुझ को वो जमा नहीं अकेले बैठा रहता चुप चाओ सेहत रहता कभी खाई रोटी कभी बस रोटा रहता लड़का था तो लड़ना था सपने जो बुने थे उन्हें भी पूरा करना था एक लड़की से प्यार था बिना इजहार का बस उसको हस्ते देखने का किया खुद से करार था दिल मक्कार था उससे बातें कर बैठा उसका धंदा दिल तोड़ने का बोली तुम दोस्त मेरे न कभी छोड़ने का हाथ मेरा अकेला था मैं पहले से उससे मिलने के बाद साथ मेरे गम भी रहता वो उसके बाद कभी मिली नही अब दम भी पिता। टूटा मैं हद तक बरगद का पेड़ था मैं खड़ा पूरी जड़ तक उसके भूल बैठा करतब लगा ली मेहनत की चुस्की उसके आगे नतमस्तक अब बस खेल हैं।।

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